lockdown: Latest News – देश कोरोना कि दूसरी लहर के कोड़े सह रहा है| जिसका हर वार घातक नहीं, बल्कि बहुत घातक है| कोरोना के आंकड़े पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर रहे है| यह सिलसिला कहां जाकर खत्म होगा किसी को पता नहीं है|
लेकिन सवाल यह है कि,
- ऐसा हुआ क्यों?
- आखिर कोरोना वायरस इस बार इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है?
- क्या कोरोना वायरस ने ज्यादा बलशाली हो कर वापसी की है ?
- या कोरोना के बढ़ते आंकड़ों की वजह कुछ और है?
अगर कोरोना से जंग में भारत को जीत हासिल करनी है, तो इन सवालों के जवाब खोजने होंगे| कुछ बातें हमारे सामने स्पष्ट हैं और उन पर हमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है|
- देश फर्स्ट वेव के समय की पिक को क्रॉस कर चुका है और इस बार के ग्रोथ रेट में पहले से भी ज्यादा तेज है|
- महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात समेत कई राज्य, फर्स्ट वेव की समय की पिक को क्रॉस कर चुका है| कुछ और राज्य भी इस और तेजी से बढ़ रहे है| ये हम सबके लिए चिंता का विषय है|
- इस बार लोग पहले की अपेक्षा बहुत अधिक कैजुअल हो गए है| अधिकतर राज्यों में प्रशासन भी सुस्त नजर आ रहा है|

कोरोना की स्पीड को लेकर प्रधानमंत्री के विश्लेषण से सहमत होना मुश्किल है, लेकिन सवाल यह भी है कि इसके आगे क्या होगा, जो नुकसान हुआ है| उसकी भरपाई कैसे होगी? कोरोना पर लगाम कैसे लगेगी?
कोरोना की पिछली लहर पर लगाम लगाने के लिए संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) का सहारा लिया गया था, लेकिन प्रधानमंत्री ने तो इस बार के हालात में संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) को गैर जरूरी बता दिया |
यह सच है कि सरकार अभी की स्थिति में संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) को जरूरी नहीं मान रही है| पर कोरोना से हालात ज्यादा बिगड़े तो क्या केंद्र अपने इस रुख पर कायम रह पाएगा| अगर अर्थव्यवस्था और लोगों की जिंदगी में से किसी एक चीज को चुनने की नौबत आई तो सरकार किसे चुनेगी? जाहिर है सरकार लोगों की जिंदगी को चुनेगी और एक्सपर्ट्स कहते हैं कि जिंदगी बिना लॉकडाउन (Lockdown) के भी बचाई जा सकती है|
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क्या फिर से संपूर्ण लॉकडाउन होगा?
हेल्थ एक्सपर्ट्स कहते है कि महामारी से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि लोगों की जांच इलाज और निगरानी पर ज्यादा ध्यान दिया जाए| कोरोना संक्रमितो को घर में ही आइसोलेट करना चाहिए| सिस्टम अगर इन उपायों पर सही तरीके से अमल करें, तो संक्रमण को काफी हद तक रोका जा सकता है| वैसे भी यह देश लॉकडाउन (Lockdown)और उसका असर, बेकारी और चौपट अर्थव्यवस्था के तौर पर देख चुका है| अगर इस बार संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) लगा तो देश की इकोनॉमी पाताल के उस हिस्से में पहुंच जाएगी जहां से उभरना अगर नामुमकिन नहीं तो बहुत आसान भी नहीं होगा|

पिछले साल 24 मार्च से 1 मई तक के लॉकडाउन (Lockdown) को संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) कहा जाता है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर देखें तो संपूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) एक काल्पनिक स्थिति से ज्यादा कुछ नहीं था| क्योंकि उस दौरान भी आवाजाही और कामकाज शून्य नहीं हुआ था| यह संभव भी नहीं था|
- डॉक्टर और हेल्थ वर्कर अपना अपना काम कर रहे थे|
- पुलिस वाले और पत्रकार भी घर से निकल रहे थे|
- दूध, दवा और खाने पीने की चीजों की दुकानें खुली थी|
- फोन और इंटरनेट सेवाओं से जुड़े लोग काम कर रहे थे|
इसके बाद भी लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान जितना काम ठप हुआ, देश को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी| अर्थव्यवस्था चौपट हो गई| जीडीपी की वृद्धि दर शून्य से नीचे चली गई और करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई |
लॉकडाउन (Lockdown) से पैदा बेरोजगारी से देश 1 साल बाद भी उबर नहीं पाया है|
यह अलग बात है कि सरकार ने रोजगार बढ़ने के आंकड़े भी पेश किए, पर इनकी हकीकत भी किसी से छिपी नहीं है| नौकरियों का अर्थशास्त्र बताता है कि अर्थव्यवस्था भले ही मंदी से उबर जाए पर लंबी बेकारी लोगों को रोजगार के लायक नहीं छोड़ती| बेरोजगारी राष्ट्रीय शर्म है लेकिन दिक्कत यह है कि हमारे यहां यह शर्म केवल बेरोजगारों को आती है सरकारों को नहीं|